पेड़ो के पीछे से
बादल के नीचे से
अम्बर पर देखो
निकल आया है चाँद
आँचल ढलकाए
जुल्फें बिखराए
बिस्तर पर लेटा
अलसाया है चाँद
ये मेरा प्रतिबिम्ब है
या मेरा प्रतिद्वन्दी
देखकर परस्पर
भरमाया है चाँद
पूनम की रात है
तारों का साथ है
किस्मत पर अपनी
इतराया है चाँद
फैला उजियारा है
पिया से हारा है
हरकत पर अपनी
शर्माया है चाँद
वक्त बदल जाएगा
कल रूप ढल जाएगा
भीतर ही भीतर
घबराया है चाँद
कल किसने देखा है
ये पल तो उसका है
सोचकर यह सच
मुस्काया है चाँद
देखो कैसा खिलखिलाया है चाँद
आज कुछ ज्यादा निखर आया है चाँद ।।
पूनम की रात है
तारों का साथ है
किस्मत पर अपनी
इतराया है चाँद
बहुत सुंदर है।
बहुत सुंदर !कविता पढ़कर याद आई लाइनें:-
चांद तुम्हें देखा है पहली बार,
जाने क्यों लगता ऐसा हर बार।
अति सुंदर, कोमल और मीठे भाव।
प्रेमलता
वक्त बदल जाएगा
कल रूप ढल जाएगा
भीतर ही भीतर
घबराया है चाँद
चाँद की इस मानसिकता को खूब उभारा है आपने इन पंक्तियों में !