नवनिर्मित पहचान

नई सदी में नव-निर्मित हुई
नारी की पहचान
संस्कारों के बंधन पर क्यों
लगते उसको अपमान

सहनशीलता लाज और ममता
त्याग,प्रेम गुण दिए बिसार
उसकी सोच की धुरी बनी क्यों
मैं और मेरे की तकरार

पिछली पीढ़ी की पीड़ा का
क्यों मांगे पुरषों से मोल
क्षमा बड़न् का शस्त्र है
भूल गई यह सीख अनमोल

आदम के हर गुण-अवगुण पर
उसने अधिकार जताया है
सब कुछ पा लेने की चाह में
अपना अस्तित्व गंवाया है

नारी के बिन नर है अधूरा
बिन नर नारी अपूर्ण
दोनों के सहयोग से बनती
ये सृष्टि सम्पूर्ण ।

3 responses to “नवनिर्मित पहचान

  1. आदम के हर गुण-अवगुण पर
    उसने अधिकार जताया है
    सब कुछ पा लेने की चाह में
    अपना अस्तित्व गंवाया है

    सही कहा आपने ! अच्छी लगी ये कविता !

  2. बेहद सुंदर अभिव्यक्ति है। साधुवाद।

  3. सत्य वचन रत्ना जी,

    आज की तस्वीर बहुत खूब उकेरी है| और हाँ आपकी माँ वाली पोस्ट भी अच्छी लगी थी|–>

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