विश्वास

विश्वास जो बिखरा तो उभरी शिकायत
शिकायत ने चुप्पी की चादर ली ओढ़
गुप चुप सा फैला गलतफहमी का कोढ़
चाहत के चेहरे पर बदली लिखावट
रिश्ते की राहों में आया एक मोड़ ।।

7 responses to “विश्वास

  1. रत्ना जी,
    कवितायें वाकई अच्छी लिखती है आप, यह समीर लाल जी के लेख से प्रभावित हो कर कॉपी पेस्ट नहीं कर रहा हुँ, बकायदा लिख कर पोस्ट कर रहा हुँ। एक सुझाव है अगर कविताओं में फ़ोन्ट की साईज थोड़ी छोटी हो तो ज्यादा अच्छा लगेगा।

  2. बढ़िया है। कुछ लंबाई बढा़इये कविता की। संकोच न करें हम पढ़ रहे हैं। पहले वाली भी पढ़
    चुके हैं। सबकी तारीफ इधर ही स्वीकार करें।

  3. शब्द संचयन को माध्यम बनाकर बडी गहरी बात कह डाली.

  4. वाह, अच्छा लिखा है, मगर अनूप जी सही कह रहे हैं थोडा और जोडो.

    समीर लाल

  5. गूढ अर्थों वाली बेहद संक्षिप्त कवितापंक्तियों की रचना के लिये बधाइयॉ

  6. रत्ना जी

    शादीशुदा लोगों को यह चौपाई लिख कर अपने बटूए में रख लेनी चाहिए। खास कर यदि आप की नई नई शादी हुई है व आप पहले महीनों में पा रहे हैं कि आज तो घर में यह टूटा या वह टूटा।

    पंकज

  7. सुझावों के लिए धन्यवाद ,यत्न करूगी कि अगली रचना में आपकी शिकायत दूर हो । आप को मेरी रचनाएं पसंद आ रही है इसके लिए मै आभारी हूँ ।

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